Monday, December 28, 2015

कम्जोरीलाई हैन क्षमतालाइ हेर्नू

माता-पिता खुद ही को नहीं सम्भाल पा रहे थे तो भला होश में आने के बाद वे उसे क्या जवाब देंगे, ये समझ पाना तो असंभव ही था। आठ साल के अब्दुल कादिर के दोनों हाथ कट गए थे। उसने छत पर खेलते हुए बिजली की हाई टेंशन लाइन को छू लिया था। पर होश में आते ही उसने कहा, पापा आप मेरे प्रिंसिपल को कटे हाथों की फोटो भेज देना, कहीं उन्हें ये न लगे कि मैं स्कूल नहीं आने का बहाना बना रहा हूँ। यही होते हैं बच्चे, वे इस बारे में सोचते ही नहीं कि वे क्या नहीं कर सकते है, उनमें क्या कमी है? उनका सारा ध्यान इस बात पर होता है कि वे क्या-क्या कर सकते है और उसे कैसे करना है।

अब्दुल रतलाम की सेंट जोसेफ स्कूल में दूसरी कक्षा का छात्र है। पिता हुसैन इंदौरी बताते है कि उस दुर्घटना के आठ महीनों में ही उसने अपने पैरों से लिखना सीख लिया। अब तो वह करीब 15 मिनट में पूरा पेज लिख लेता है और उतने ही आराम से गणित के सवालों को हल कर लेता है। उसे देखकर लगता है सफलता पाने के अनगिनत नुस्खों और तरीकों को सीखने की बजाय इतना ही काफी होगा कि हम मन के किसी कोने में बच्चे बने रहें। अपने अन्दर बैठे बच्चे की सुनें, उसे तर्क-वितर्कों में उलझाएँ नहीं। हमारा सारा ध्यान हम क्या-क्या कर सकते हैं और उसे कैसे करना है, पर रहे न कि अपनी कमियों पर। विश्वास मानिए, जिस दिन से हम ऐसा करने लगे उसी दिन से हम अपने हर काम में सफल होंगे और हमारी जिन्दगी भी बिल्कुल एक मासूम बच्चे की तरह खिल उठेगी।

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